गाली

तेरी माँ की ** !
चौंक गए न! 
भई गाली दे रही थी,
लगी न गोली जैसी !
हम दुनिया वाले भले खुद को सर्वशक्तिमान की उपाधि दे लें,
पर सच तो ये है कि जब कुछ कहना हो तो ज़ुबान पर मतलब के शब्द कम और गालियां ज़्यादा होती हैं।
क्या इसी भोंडेपन, भद्धेपन को हम नाज़ करने जैसी इंसानी अक्ल का नाम देते हैं?
क्या यही हम बुद्धि वाले प्राणियों की बुद्धिमता होती है?
नहीं, एकदम नहीं। बल्कि इस तरह हम अपने जाहिलपने का प्रचार प्रसार करते हैं।
एक मित्र हैं हमारे।
पढ़े लिखे , समझदार , विचारवान ।
उनकी बड़ी पूूूछ रहती है सामाजिक गतिविधियों में।
और हो भी क्यों न,
उनका हृदय प्रशांत महासागर की तरह विशाल है जिनमें (निस्संदेह) दया और करुणा जैसे बहुमूल्य माणिक भरे पड़े हैं।
मै उनकी इन गुणों की प्रशंसक हूँ। पर, जैसा कि सभी मनुष्यों में पाया जाता है, उनमें भी (एक) अवगुण है.. बमवर्षक की तरह तेज़ गति से उनके मुखारविंद से गालियों की बौछार होती है।
जितने रिश्ते एक इंसानी जीवन में होते, उन सबके ऊपर उनकी गालियाँ अपनी पर्यायवाची मित्रगणों के साथ झुंड में पायी जाती हैं उनकी जिह्वा पर।
कभी कभी मै सोचती हूँ कि इतना टैलेंटेड इंसान समाज को और भी बहुत कुछ दे सकता है, पर गाली ही क्यों?
मै ने कई लोगों को कहते सुना है और आप सबने भी सुना ही होगा कि जितनी गन्दी गाली,उतनी पक्की दोस्ती। गालियाँ दोस्ती पक्की करती तो उन मुहावरो का क्या औचित्य रह जाता है जो दोस्ती पर बनी हुई है, जैसे,साथ निभाने वाले हालात नहीं देखते या जिसके पास एक सच्चा दोस्त है उसे आईने की ज़रूरत नहीं होती।
इससे इतर बात करें तो गाली देने से भले कूल वाली फ़ील आती हो पर आसपास के माहौल को बुरी तरह प्रभावित होना पड़ जाता है, जिनकी राय अबतक आपकी अच्छाइयों की वजह से आपके लिए लिए स्वच्छ थी,आपके गाली गलौज से क्षण भर में धूसरित हो जाता है। क्या अब भी आप कूल फील कर रहे हैं? क्या ये हैं आप? क्या इसी क्षण के लिए अबतक आपने ख़ुद को तैयार किया था?
एक और बहाना हो सकता है आप के पास, दिल की भड़ास निकालने का ज़रिया कह सकते हैं इसे।
पर, एक बार जितनी मेहनत आप गाली देने में लगाते हैं उतनी मेहनत अपने अंदर की भड़ास को ऊर्जा में बदलने की कोशिश में लगा देंगे तो बहुत कुछ कर सकेंगे, फायदे में ही रहेंगे आप,यकीन मानिए।
किसी को माँ या बहन की गाली देने के बजाय हर माँ और बहन को सम्मान के साथ जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करके देखिए न, बहुत सुकून देने वाला क़दम होगा ये, न किसी की नज़रों में गिरिये और न किसीको गिराइए।
ये आप नहीं हैं,
आप एक स्रोत हैं, किसी की उम्मीद का।
आप एक स्रोत हैं,
कइयों की खुशियों का।
आप ज़रिया हैं, आँखों की चमक का।
उन टूटे पगडंडियों की मरम्मत कीजिये, जिन पर अकेले चलना कठिन होता जा रहा है।
एक साथ बनिये,
किसी थरथराहट का मज़बूत हाथ बनिये।
आपसे जुड़कर लोग अपनी और आपकी ताक़त बनते हैं,
ये बहुत बड़ी बात है जिसे कभी भी समझा जा सकता है और उनमें इज़ाफा किया जा सकता है।
गाली न दें और न देने दें,
क्योंकि 
कहीं न कहीं आप ख़ुद को ही गरियाते हैं।

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