कर के देखिये, हो जाएगा!!

कभी कभी हमारे अंदर बाहर इतना शोरगुल होता रहता है कि हम एकदम कन्फ्यूज़ हो जाते हैं,किसकी पहले सुनें! और नतीज़तन मेरी तरह ही कोई इतनी स्याह रात से कुछ स्याही उधार लेकर लिखने बैठ जाता है, या तो दिल की लिख ले या बाहरी दुनिया की। पर मैं दिल की लिखूंगी क्योंकि मेरे ख्याल से जो अंदर चलता है वो ज़्यादा जलता है। एक सवाल कौंध रहा है मन में कि हम इतनी सुंदर ज़िन्दगी से भागते क्यों रहते हैं, ज़रा सी आँच पर इतनी तपन क्यों महसूस होने लगती है.? कितना कुछ होता है हमारे पास फ़िर भी हम रीते रहते हैं.. प्यार करने जैसी ख़ूबसूरत क़ुदरती नेमत जिसे ज़िन्दगी कहते हैं उससे नफ़रत होने लगती है,क्यों? वजहें कई होंगी पर एक वजह जो मेरी नज़र में है वो ये कि हम स्वीकार नहीं कर पाते हैं। स्वीकार नहीं कर पाते कभी जो कोई हमें दो कड़वी पर सच्ची बातें सुना दे.... जी में आता है कि कहने वाले को अच्छा सबक सिखा दें कि ज़ुबान पर ताले लग जाएं, है न!!! हमसे सहा नहीं जाता जब किसी विषय पर "ना" सुनने को मिल जाए ... उसने मुझे रिजेक्ट कर दिया, उसकी इतनी हिम्मत?? क्या समझती/समझता है ख़ुद को? हम स्वीकार करना ही नहीं चाहते जब सचमुच हमने ग़...